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मगध

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दोस्तों आज हम बात करने वाले है मगध  के बारे में  मगध क्या है  इसके संस्थापक कौन थे तथा भारतीय इतिहास में इसका क्या महत्त्व है और मगध  में  आने वाले वंशो के बारे में चर्चा करेगे   ?


बौद्ध धर्म क्या है ?
जैन धर्म क्या है ?
वेद कौन-कौन से है ?

दोस्तों बौद्ध धर्म के ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय तथा जैन धर्म का भगवती सुत से 16 महाजनपदो के बारे में जानकारी मिलती है वैदिक काल के राजनैतिक क्षेत्र से बड़े क्षेत्र को महाजनपद कहते थे  जब 16 महाजनपदो का समय चल रहा था उसमे से केबल मगध महाजनपद ही ऐसा शक्तिशाली राज्य बना जिसने अपने राज्य का विस्तार किया  मगध के  अंतर्गत बिहार का गंगा नदी का दक्षिणी भाग आता  था तथा मगध की राजधानी गिरिव्रज या राजगृह (पटना) थी इसके संस्थापक वृहद्रथ था  

मगध के अंदर चार वंशो ने शासन किया था जो निम्न प्रकार है –

   हर्यक वंश

 

बिम्बिसार 

हर्यक वंश का संस्थापक बिम्बिसार को माना  जाता है कही-कही इसका नाम श्रेणिक भी मिला है 544ई.पू. यह मगध की गद्दी पर बैठा और यह हर्यक वंश में अपनी प्रशासनिक व्यवस्था के लिए जाना जाता था  बिम्बिसार बौद्ध धर्म का अनुयायी था और जब बुद्ध का स्वास्थ्य बिगड़ गया था तो इसने राजवैध जीवक को उनका उपचार करने के लिए भेजा था   इसके पुत्र का अजातशत्रु था  बिम्बिसार ने ही हर्यक वंश का विस्तार किया और इसने अपनी राजधानी राजगृह को बनाया इसने 52 वर्षो तक मगध पर शासन किया  इसने राज्य का विस्तार करने के लिए अन्य राज्यों की राजकुमारियो से विवाह किया राज्य का विस्तार करने लगा इसने राज्य का विस्तार करने के लिए युद्ध को प्राथमिकता नही दी इसने कौशल के राजा प्रसेनजित की बहन महाकौशला से वैशाली के  चेटक की पुत्री चेल्लणाऔर पंजाब की राजकुमारी क्षेमभद्रा से शादी  कि इस प्रकार उसके साम्राज्य का विस्तार होने लगा

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अजातशत्रु

राज्य में बिम्बिसार का वैभव को देखकर उसके  पुत्र अजातशत्रु ने बिम्बिसार की हत्या कर दी स्वयं 493 ई.पू. से मगध का राज्य करने  लगा अजातशत्रु   के  इस  व्यवहार  के  कारण  हर्यक  वंश  को पितृहन्ता वंश के नाम से भी जाना जाता है अजातशत्रु बौद्ध धर्म का अनुयायी था और इसे कुणिक के नाम से जानते थे  इसी के शासन काल में 483 ई.पू. प्रथम बौद्ध संगीति हुई थी 

उदायिन

अजातशत्रु का पुत्र था इसने भी अपने पिता अजातशत्रु की हत्या की थे और स्वम गद्दी पर बैठा इसने    पटिलग्राम यानि पाटलीपुत्र की स्थापना की यह जैन धर्म को मानता था और उसी का अनुशरण     करता था इसका पुत्र नागदशक  था और यही हर्यक वंश का अंतिम शासक रहा था

शिशुनाग वंश

इसका  संस्थापक शिशुनाग था और इसने  वंश शिशुनाग वंश की स्थापना की थी  और इसने अपनी राजधानी वैशाली को बनाया और  इसने ही अवन्ती शासक को हराकर अवन्ती  को अपने  राज्य  में मिला लिया शिशुनाग पहले राज्य में अमात्य के पद पर था अथार्थ एक मंत्री था फिर उसने अपने वंश की स्थापना की इसका उत्तराधिकारी कालाशोक था कालाशोक में पाटलिपुत्र को पुनः राजधानी बनाया इसी के शासन काल में दिव्तीय बौद्ध संगिती हुई थी   शिशुनाग वंश का अंतिम शासक  नंदिवर्धन था 

नन्द वंश 

नंदवंश का संस्थापक महापद्मनंद था यह बहुत कुरुर शासक था इस शासक को पुराणों में भगवान् परशुराम का अवतार बताया था इसने एक राट की उपाधि धारण की थी यह इस वंश का सबसे प्रतापी राजा  था नंदवंश का अंतिम शासक घनानंद था इसी के समय में सिकंदर ने भारत के उत्तरी और पश्चिमी भाग पर आक्रमण किया था  इसके शासन में प्रजा बहुत दुखी रहती थी इसी के शासन काल में चाणक्य रहते थे जिन्होंने चाणक्य नीति की रचना की   एक  बार जब घनानंद ने चाणक्य को द्वार से  निकल दिया  तो  चाणक्य  ने  अपने  सिद्धांतो  से चन्द्रगुप्त मौर्य को योद्धा बनाया और घनानंद को पराजित करवाकर नन्द वंश पर मौर्य वंश की नीव रखी  

 

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